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कोकिल पुनि आउ / ईशनाथ झा

कोकिल पुनि आउ
नव मधुमय राग सुनाउ
आशामे युग पर युग बीतल;
श्रुति विफल विकल अन्तर विहृल,
लय लेल कुंज पतझाड़
नियतिक कुलषित व्यवहार
आबि किछु दए दी जीवन
नव दल लए कुसुमित हो मधुवन
तरू रसाल पर
लए पंचम स्वर
कण कणमे मधु भरइत सुन्दर
चिर-प्रसुप्तमे नव जागृति दए
अपनाकें अपनाउ। कोकिल.....
हे नश्वर कोकिल उमर विभव
की छल विभूति, नित अणुगत भव
सम्प्रति अपहृत अधिकार
मधु ऋतु बिनु की श्रृंगार
एखन समुचित सन्दीपन
गुंजित हो उन्मद पन गायन
एक नादसँ
एक बादसँ
झंकृत भए खंडित हो बन्धन
मुक्त पवनमे नवल वसन्तक
अनुपम ज्योति देखाउ। कोकिल...