Last modified on 24 अक्टूबर 2009, at 13:40

कोयला और आदमी / दीनदयाल शर्मा

कोयला जैसा बाहर से
वैसा ही भीतर से है ।
फिर भी
दूसरों के लिए
जलता है ।
आदमी का आजकल
पता ही नहीं चलता है ।

मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा