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कोयल / पंकज सुबीर

कोयल आम पर बैठी है
वसंत का मौसम भी है
आम पर मंजरियाँ भी आईं हुईं हैं
फिर भी कोयल कुहुक नहीं रही है
उसे कुछ नज़दीक दिख रही है धरती
कुछ ऊहापोह में है वो
इसीलिए कुहुक नहीं पा रही है
हालाँकि कुहुकने के लिए सही वातावरण है
मगर प्रश्न वही है
कि सब कुछ बदला बदला सा क्यों है
कोयल जानती नहीं
कि वास्तव में समय बदल गया है
वो जिस पर बैठी है
वो
आम का पेड़ नहीं
आम का बोन्साई है