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कोयल राग विभोर / अवधेश कुमार जायसवाल

सोन चिड़ैया गाछी फुदकै
कोयल राग विभोर
चंचल हिरणी वन-वन डोलै
पंख नचावै मोर।
सरसर पुरवा, डोलै पतवा
फूलवा रंग-विरंग
चूस परागन मौलै भंवरा
विरहा गीत चकोर।
छुपी-छुपी चंदा दूर से देखै
धरती लाज लजावै
देख मनोरम छटा जगत के
जुगनू दौड़लोॅ आबै।
टिम-टिम तारा
गगन लजावै
तान चदरिया कारी
मन में सोचै, लाज लजावै
करमोॅ केॅ दै छै गारी।
हमरोॅ रंग-विरंगा चादर
देतियोॅ हे भगवान
ओढ़ी चदरिया
हमहुं निखरतौं
रिझतौं सांझ विहान।
कुशल कामिनी
जैसनोॅ धरती
आलिगन सब तरसै
सूरज ने नौछावर करलकै
आपनोॅ सातोॅ रंग।
ब्रह्मा केॅ ई एकल रचना
सब देवतन केॅ जोग
सब रचना केॅ करम अलग छै
जेकरा जैसनोॅ भोग।