कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
गप-गप-गप-गप गीली गेलै,
बाँस ताड़ बागीचा।
महल-झोपड़ी गीली गेलै
जाल माल गालीचा।
कहीं-कहीं पीपल गाछी पर
चूहा, साँप, बिलैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
हाथी, घोड़ा, ऊँट लापता,
गदहा पैते थाह?
गीदड़, कुत्ता किकिआय मरलै
कीट, पतंग तबाह।
मेमना, बछिया भाँसी गेलै
साथे धेनू गैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
गिलटवाला गहना डूबलै
गौना वाला पेटी।
लोटा, थरिया, छप्पर भाँसलै
साथे गुड़िया बेटी।
बेटा कहाँ, बाप कै ठां छै?
कोय नै छै बतबैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
कोसी नें धारा बदली केऽ
लेलकै सबके प्राण।
साठ साल तक सुतलऽ रहलै
इंजीनियर बेइमान।
नेतबाँ हुलकै आसमान सें
चमड़ी के नोंचबैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
बचलऽ खुचलऽ पक्का पर हो
कटलौ कत्ते रात।
भूख प्यास केऽ नाम नैं बोलऽ
ऊपर सें बरसात।
युगयुग जीयै सेना हम्मर
राहतसँ मिलबैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
भाषणबाजी सुनतें सुनतें
पाकलऽ दोनों कान।
छीना-छपटी राशन-पानी,
बेच हाय ईमान।
एक चनाँ सें भाँड़ नैं फूटै
सुनलेऽ बाबू भैइया।
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
नकसा में खोजै छी बाबू!
आपनों-आपनों गाँव।
पाँच जिला में कहाँ-हेरैलै?
कहाँ में धरबै पाँव?
कहाँ में मिलतै? तो हीं बताबऽ
मँगनी में खोजबैइया
कोसी केऽ कल-कल धारा हो,
कोय नै छै सुनबैइया।
कोसी केऽ खल-खल पारा हो,
कोय नैं छै रोकबैइया।
-अंगिका लोक/ जनवरी-मार्च, 2009