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कोलाँस / प्रेमशंकर शुक्ल

बड़ी झील को भरी-पूरी देख कर
लहक उठती है कोलाँस नदी

सुनते हैं आजकल कोलाँस भी
झेल रही है सूखे की मार

दूरदराज से पानी लाकर
कोलाँस ही भरती रही है बड़ी झील का पेट
बारिश का अभाव कि कोलाँस भी
मन मसोस कर रह जाती है

कोलाँस सूखती है
तो बड़ी झील के मन में उदासी बैठ जाती है
और बड़ी झील मछरी की तरह
छटपटाती रहती है गाद में रात-दिन !