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कोसी रेणु के सर चढ़ी है / विष्णुचन्द्र शर्मा

तबाही मचाने वाली कोसी नदी
मेरे कंधे तक आ गई है।
बता रही-हो तुम:
‘नेपाल में
टूट गया है राजशाही का बाँध,
टहल रही है जनता राजमहल में
फटेहाल।
अशांत और नंगी है
अभी जल-सी।’
‘तुम कोसी नदी
पूछ रही हो
कहाँ लिखी थी परिकथा-
‘मधेपुरा में
सुपौल में
सहरसा में।’
रुको थोड़ा रुको
पूर्णिया जिला
जलमग्न है
परती ज़मीन में
लगाए गुलाब
जल समाधि ले चुके हैं।
तुम कोसी मेरे
कंधों को दबाकर
सिर पर चढ़ती जा रही हो!
थोड़ा प्रचंड से
पूछने दो:

‘जनता नेपाल की
कैसा जनतंत्र चाहती है!’
‘परती परिकथा’ की
नौ लाख दस हजार
278 जनता
डूब रही है...।
मेरे कंधे दुःख रहे हैं
सीना तप रहा है...
मैं परती परिकथा हूँ।