Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 13:45

कोहरे का बिम्ब / निदा नवाज़

(अपनी दोस्त सरिता के नाम)

नदी मैं जानता हूँ
तुम भी पीड़ित हो
रिसते हैं दु:ख
तुम्हारे भीतर भी
तुम्हारे भीतर भी
होता है कोहरे का बिम्ब
तुम्हारे अंदर भी फूटते हैं
आंसुओं के अंकुर
तुम में भी डूबता हैं
इच्छाओं के दिए
नदी मैं जानता हूँ
तुम अकेली नहीं हो
चलती हो जब
किसी मरुस्थल के संग
हो जाती हैं
तुम्हारी भी तेज़
दिल की धड़कनें
तुम भी हांफ जाती हो
अधिकतर
अपने ही आप से
संघर्ष करते करते
लेकिन फिर भी
तुम अकेली नहीं हो नदी
मेरी तरह
तुम में बसेरा करती हैं
सुनहली मछलियाँ
चमकते मोती
रुपहली सीपियाँ
और तुम्हारे
विवेक तक पर
चहचहाती हैं चिड़ियाँ
खेलती हें नन्हे बच्चों की तरह
मुस्कुराहटों की तितलियाँ
नाचता है मन का मोर
नदी तुम तो अकेली नहीं हो
अकेला मैं हूँ
बहता हूँ अपने भीतर ही भीतर
और अधिकतर फेंकती है
मुझ को ही तट से बाहर
मेरे मन आंगन में बहती
मेरे अकेलेपन की
रिसती नदी.