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कौआ और मुर्गी / महेश कटारे सुगम

कौआ जी को दौड़ धूप के,
बाद टिकट मिल पाया।
पाकर टिकट सयाना कौआ,
मन ही मन हरषाया।

करने को सम्पर्क एक दिन,
मुर्गी के घर आया।
हाथ जोड़कर शीश झुकाकर,
ऊपर मन मुस्काया।

बोला, मुर्गी दीदी, मुझको
अपने कष्ट बताओ।
सारे दूर करूँगा सचमुच,
मगर मुझे जिताओ।

मुर्गी बोली, कौआ भैया
एक काम करवा दो।
मेरे राशन के कारड में
नौ चूजे बढ़वा दो।