दिन के उजाले में
अनेकों नाम सब के समाज में
हँसी-हँसी सहज
पुकारना
रात के सहमे अँधेरे में
अपने ही सामने अकेला एक नाम
बड़े कष्ट से, अनिच्छा से
सकारना।
कौन-सा सच है?
सब की जीत की खोज कर लायी हुई खुशी में
अपनी हार को
नकारना
या कि यह : कि एक ही विकल्प है
हार को लब्धि मान
अपने मिटने पर ही अपने को वारना?
कसौली (हिमाचल), 23 अक्टूबर, 1968