कौन स्वप्न के चंद्रलोक से
छाया बन उतरी भू पर?
सुभग कल्पना की प्रतिमा सी
नवल इन्द्र धनु-सी सुंदर।
नयनों में मादक पराग ले
इंगित में ले सृष्टि अमर।
अंधेरों में अनुराग उषा ले
स्निग्ध चॉंदनी स्मृति में भर।
कौन कौन यह विश्व मोहिनी
माया वन की तितली कौन?
भ्रू-विलास के संकेतों में
लुभा रही जो सबको मौन।
रंभा है यह या कि मेनका
सुधा डालती है क्षण-क्षण।
किसके यौवन के प्रवाह में
झूम रहा जग का कण-कण?
आदि सृष्टि संभूत विश्व की
अद्भुत कौन पहेली सी?
अपने इन्द्रजाल से जग को
नचा रही अलबेली सी
रूप गर्विता कौन खड़ी यह
भुवन-मोहिनी माया बन?
अवगुंठन में विहॅंस-विहॅंस जो
तोड़ रही विधि का बंधन।