यह समय सबसे कठिन है
कौन कहता है।
है अभी आकाश खाली
हां अभी धरती फटी है
क्रूर स्थिति का तमाचा
सुन्न अपनी कनपटी है
होंठ पर साजिश भरा
पल मौन धरता है।
रच रही भूगर्भ में हलचल
खिसकती प्लेट कोई
दूधिया नन्ही छुअन से
जी उठी है स्लेट कोई
द्वीप कोई फिर वलित
होकर उभरता है।
देर तक जागी हुईं आंखे
गले दिन से मिलेंगी
तिलमिलायेंगी विसंगतियाँ
सड़क खुल कर हँसेगी
एक डैना फिर उमड़
आकाश गहता है।