Last modified on 17 सितम्बर 2011, at 18:03

कौन कहता है की हम मर जायँगे / वीरेन्द्र खरे अकेला

कौन कहता है कि हम मर जाएँगे
ज़ख़्म गहरे ही सही भर जाएँगे
 
स्वर्ग में भी होगी कुछ उनकी जुगाड़
पाप कर कर के भी वो तर जाएँगे
 
मानता हूँ हैं ये नालायक़ बहुत
अपने ही बच्चे हैं किस पर जाएँगे
 
प्रश्न करके इस क़दर तू खु़श न हो
सर से ऊपर सारे उत्तर जाएँगे
 
कट गई है ज़िन्दगी ये सोचते
आने वाले दिन तो बेहतर जाएँगे
 
घोषणाएँ कुछ नई नारे नए
और क्या मंत्री जी देकर जाएँगे
 
आदमी पर है कोई दानव सवार
किस तरह ये ख़ूनी मंज़र जाएँगे
 
ये 'अकेला' की ग़ज़ल के शेर हैं
तीर जैसे दिल के अंदर जाएँगे