कौन तुम, हे रूप के अवतार!
इस विजन-वन-वल्लरी के
वक्ष पर अंकित प्रणय के चित्र-स्वप्न-कुमार!
बेध दु: ख-तिमिर-चिकुर-घन
सुख-विभास-वदन-सुधाधन
बंधनों के सत्य-दर्शनक्या हुआ साकार?
या, चिरन्तन वेदना के
ताप से कंचन बना के,
साधना लाई किसी के प्रेम का उपहार?
कुंज के स्वप्निल नयन में
हास से मुखरित शयन में
प्रकृत के उर में सजग तुम कौन, किसके प्यार?