कौन भारत देश जैसा,
पुण्य में ऋषिकेश जैसा !
शरत शीतल, शुभ्र-सा जो
दूब पर कण ओस सोया,
चाँद के जलकुण्ड में हो
श्वेत रंग कौशेय धोया;
सिन्धु, सतलज और गंगा
और यह गोदावरी जो,
केश हैं घुंघराले जिसके
ताम्र कोशी साँवरी जो;
दे रहा आशीष कर से
है खड़ा पद्मेश जैसा ।
वेद ही जिसके वचन हैं,
उपनिषद हैं नयन जिसके,
कण्ठ जिसका भागवत है,
हैं अठारह ब्यान उसके !
सागरों पर शयन होता
व्योम में विचरण करे जो,
ध्यान में कैसे धरूँ मैं
है परा से भी परे जो !
अंक कोई कुछ रहे पर,
भागफल सुख शेष जैसा ।