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कौन से सपने / महेन्द्र भटनागर

कौन से सपने
लगे अपने
निरन्तर
साधना साकार करने जो
हृदय तन से लगे तपने ?

अरे मन !
बोल तो रे
कौन-से सपने ?
भर रहे हैं शक्ति ऐसी —
दे रही जो
प्रेरणा, गति, चेतना,
घन फट रहे
औ’ उड़ रही है वेदना !
उल्लास की अविरल उमंगें
उर-समुन्दर की तरंगें
उठ रही हैं, गिर रही हैं

और मुखड़े पर
नयी ही आज
रेखाएँ दिखाई दे रही हैं !
कौन-सा सुख-भाव वर है
सुघर, सुन्दर, अमर जो श्रेष्ठतर है,
हो गया हलका
कि जिससे बोझ जीवन का
युगों की कामना का चित्र भी रंगीन
अन्तर-दाह शीतल लीन ?