सभै चललै चित्रकूट में
राम लखन सिय सें भेटलकोॅ ।
राजा जनक सुनयना भी ऐलोॅ,
सभै मिली केॅ सभा बैठलकोॅ ।
माता सिनी के विधवा वेश देखि,
अकुलाय उठलै श्री राम ।
इ की होलै केना गेलै,
हे भरत तात सुरधाम ।
सब बात सुनि केॅ राम,
पिता के सुमिरन करेॅ लागलै ।
हुनकोॅ प्रति श्रद्धा निवेदित करी,
कुकाल केॅ कोसे लागलै ।
चित्राकूट में जबेॅ रनिवास
शिथिल छेलै पाय अवकाश
जनक रनिवास मिलै ला ऐलै,
आदरपूर्वक कौशल्या बैठलकै ।
की कहलोॅ जाय की करलोॅ जाय,
कोय नै समझै पारी रहलोॅ छेलै,
मनोॅ में दुख आंखोेॅ में आंसू,
भरी केॅ सब बैठली छेलै ।
कहलकै सुनैनया समय गुनी केॅ,
टेढ़ोॅ बुद्धि छै विधाता के ।
ऐन्होॅ सुकुमार बुतरु सिनी केॅ,
वज्र मारि के दुखी करनें छै ।
इ संसार में विष ही विष छै,
अमरित कहां सें मिलतै इहाँ ।
दुखोॅ सें भरलोॅ इ संसार में,
आनंद के छन पैबोॅ कहाँ ।
सुमित्रा कहलकी ठीके कहै छौ,
विधाता के तेॅ चाले उलटा छै ।
जनम मरण अरू संहार करि,
हुनी बच्चा रंग खेलै छै !
कौशल्या सुनि रहलोॅ छेलै,
सुनयना सुमित्रा केरोॅ सब बात ।
कहेॅ लागली हिरदय धरि केॅ,
उचित बात राम केरोॅ भात ।
केकरौ कथी लेॅ लेॅ दोष देवोॅ,
करमोॅ केरोॅ गति बड़ी न्यारी छै ।
लाभ हानि जीवन मरण सब,
देवो वाला विधाता ही छै ।
दैव केरोॅ आज्ञा सभै के सिर छै,
जनम-पालन-मरण अमृत-विष ।
जे जबेॅ चाहतै तबेॅ दे देतै,
के जानै केकरा में छै हित ।
सब प्रपंच चलै छै विधाता,
मोह सें सोच करना व्यर्थ छै ।
हम्में सब जे चिन्ता करी रहलोॅ छियै,
एकरा में भी आपनोॅ स्वार्थ छै ।
ऐहोॅ समय में ऐन्होॅ वाणी,
तोंही कहै सकेॅ छौ पटरानी ।
वचन तोरोॅ उत्तम आरू सच छौ,
कठिन काल में भी धीरज धरनें छौ ।
सभै घटना पर टिप्पणी करी
कहै कौशल्या धैर्य मन में धरी ।
राम वन गमन अच्छा होतै की नै,
हमरा तेॅ छै भरत के ही भय ।
हमरोॅ चारो बेटा आरू बहू,
गंगाजल जुकां पवित्रा छै ।
सब बेटा एक समान प्रिय छै,
झूठ कहौं तेॅ राम शपथ छै ।
शील गुण नम्रता बड़प्पन,
भाय भगति भरोसा अच्छापन ।
भरतोॅ में सब भरलोॅ छै,
सूर्यवंश केरोॅ कुलदीपक छै ।
कहै छेलै पहले राजा हरदम,
कुकाल में नै रहै छै थिर मन ।
ओकरोॅ चरित पहचानलोॅ जाय छै,
आग में तपि जेना सोना चमकै छै ।
अखनी इ सब कहै के समय,
नै छै, सुनि लेॅ सभै लोग ।
सब कहतै स्वार्थवश कौशल्या,
भरत बड़ाई करी रहलोॅ छै ।
ज्ञान भंडार जनकोॅ के रानी,
तोरा के उपदेश देथौं ।
कही दीहौ जनक जी सं अपना रंग,
जे हम्में बताय दै छियौ ।
जौ राजा के ठीक लागै
लक्ष्मण बदले भरत वन जाय ।
भरत अंतर मन सें दुख छै,
जानोॅ के डर नै होय जाय ।
सब स्तब्ध रहली रानी,
साफ मन कौशल्या के वाणी ।
जेकरे कारण पुत्रा वन गेलै,
ओकरे चिन्ता में घुले रानी ।
हक रही गेलै सब लोग,
सुमित्रा कहलकी होय गेलै बेर ।
दू घड़ी रात बीति गेलोॅ छै,
अब विसराम भी करना छै ।
माता कौशल्या धीर धरी केॅ,
सुनैना सें मिललोॅ जाय ।
अबे तेॅ हमरोॅ रक्षक छै,
एक विधाता दोसरोॅ जनक राय ।
सुनयना चरणोॅ पर पड़ी गेलै,
विह्नल वचन हुनि बोललकी ।
ऐन्हों सद्बुद्धि आरू नम्रता,
दशरथ रानी राम केरोॅ माता ।
तोंही कहै पारै छौ,
संकट सं उबारै छौ ।
मन वचन आरू कर्मों सें,
जनक तेॅ तोरोॅ सेवक छौं ।
एकै सहायक सभै के छै,
बाबा महादेव आरू पार्वती ।
तोरोॅ सहायता के करे पारेॅ,
दीपक केना सुरजो के उतारेॅ आरती ।
सभै सभै सें सब भाँति मिलली,
सीता लै साथ सुनयना गेली ।
आपनोॅ जगहों में रहली कौशल्या,
समय के गति देखी रहली ।
चित्राकूट में सभा जे होलै,
राम भरत आपनोॅ बात कहलकै ।
बहुतै रंग सें समझैलकै श्री राम,
दुनु के करना छै पिता के काम ।
पितृ आज्ञा के पालन करना,
दुनु भाय के छीकै धरम ।
कानला पीटला दुखी होला सें,
ने बदली जइतै आपनोॅ करम ।
गुरु वशिष्ठ के निर्देशन में,
अयोध्या के राज चलावोॅ जाय ।
चैदह बरसो बाद हम्में अइवो,
धीरज सें रहियोॅ हमरोॅ भाय।
भाय सिनी केॅ परेम देखी केॅ,
माता के हिरदय गेलै जुड़ाय।
विधना केरोॅ किरपा ही छीकै,
मिली जुली रहतै सभै भाय।
देखी कैकेयी पछतावै छै,
की कुकाल नें घेरलोॅ छेलै।
आवत काल विनाशत बुद्धि,
हमरा पर ही पड़लोॅ छेलै।
ऐतना दुख हम्में देलियै,
राम तेॅ निर्विकार छै।
कौशल्या देवी भी थिर छै,
सब बात स्वीकारे छै।