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क्या करामात है धरती पे जो फैला पानी / संजय चतुर्वेद

क्या करामात है धरती पे जो फैला पानी
बावला-सा कभी दरिया कभी सहरा पानी

उसकी आवाज़ ख़ला में है दुआओं की तरह
चाँद तारों में जो पिन्हा है ज़रा सा पानी

ज़ुल्म शहकार-सा लगता है कई बार हमें
सूखे पत्तों के बड़े पास से गुज़रा पानी

कोई क्यों ख़ून बहाए हमारा ख़ून है वो
उन दिमाग़ों को भी मिलता रहे सादा पानी

बाज़ औक़ात कोई राह चली आती है
पहाड़ काट के आया है उबलता पानी

वही एजाज़ वही रंग है सय्यारों का
है दरक्शां मेरी आँखों में ये किसका पानी

2012