सुनो, शांत होकर पत्तों को
क्या कहते वे
घाट नहाते
उस साधू का जाप भी सुनो
लिया किसी ने मंदिर में -
आलाप भी सुनो
पक्षी भी जब उनको सुनते
चुप रहते वे
किसी नमाज़ी ने
मस्जिद में अज़ान दी
उधर गली में मुर्गे ने है
अभी बाँग दी
नदी-घाट पर कोरस बनकर
सुर बहते वे
उन्हीं सुरों की संगत करते
गीत हमारे
साखी-सबद
उन्हीं की धुन पर गये उचारे
इसीलिए
सुख से विपदाओं को सहते वे