दुर्भाग्य कहें, सौभाग्य कहें
या विधि विरचित सन्ताप कहें।
सम्पूर्ण दशाएँ हैं विशेष
इनको जो चाहें, आप कहें।
चहुँदिश समृद्धि विलास करे!
यदि यह एषणा सत्य होती,
तो भर देता निश्छल निसर्ग,
सम्पूर्ण सीपियों में मोती।
पर कहाँ हुआ! कुछ सूख गईं
कुछ की जागृत आशाएँ हैं।
कुछ एक बूँद की प्यास लिये
जल में भी, मुख फैलाये हैं।
लालशा कहें सन्तुष्टि कहें
या मन का व्यर्थ विलाप कहें!
सम्पूर्ण दशाएँ हैं विशेष
इनको जो चाहें, आप कहें।
सम्पन्न विपन्न सबल निर्बल,
उच्श्रृंखल मन्द मूर्ख ज्ञानी।
सन्तुष्ट अतृप्त सदय निर्दय
निश्चिन्त विकल नत अभिमानी
सन्तुलन हेतु आवश्यक है
भूमण्डल पर सबका होना,
उपवन के एक पौध को भी
जगती चाहती नहीं खोना।
अभिशाप कहें वरदान कहें
या कोई पश्चाताप कहें।
सम्पूर्ण दशाएँ हैं विशेष
इनको जो चाहें, आप कहें।
छिटका है विविध बीज सर्जक
वसुधा के उर्वर प्रांगण में।
विकसित हैं भिन्न-भिन्न तरुवर
सम्पन्न, मनोहर उपवन में।
कुछ हरेभरे कुछ गिरे पड़े।
कुछ की शाखाएँ ठूँठी हैं।
है सङ्ग किसी के भेदभाव,
यह प्रचलित बातें झूठी हैं।
अवकृपा कहें अभिप्रणय कहें
या दैविक पुण्य प्रताप कहें
सम्पूर्ण दशाएँ हैं विशेष
इनको जो चाहें, आप कहें।