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क्या जानूं मैं / अर्चना कुमारी

एक रात के गहरे पहलू में
एक मासूम कली का मुस्काना
कि खींच के आंचल का कोना
जोर जोर हंसते जाना
€या जानोगे दुनिया वाले
फिर से ब‘चा बन जाना
कि उम्र की ऊंची चौखट पर
भूल गये बचपन
कोरे कोरे सावन की
हरी चूडिय़ां
भरे जेठ की पहली बूंद
सौंधी धरती
कोयल कूके बाग-बाग...सुर मीठे
नयी नवेली दुल्हनियां
पायल की छनछन
कौन जाने...किस विधि से रीझते प्रीत नयन
कैसे बांधू चंचल मन
उतान तरंगों के राजा
कैसे बिंधूं मन चितवन
हुं सजल चपल अल्हड़ वन्या
सीधी सी भोली कन्या
€या जानू कैसे मान धरूं
न जानूं कैसे प्रिय कहूं!