क्या तुम नभ पर चलते चलते,
संगी साथी बिना विचरते,
अवनी अपलक, नित्य निखरते,
घटते बढ़ते और बदलते,
प्यार न पाकर पियराए हो,
शून्य नयन से पथराए हो?
शैली की कविता ‘टु द मून’ का अनुवाद
रचनाकाल: १२-०८-५६
क्या तुम नभ पर चलते चलते,
संगी साथी बिना विचरते,
अवनी अपलक, नित्य निखरते,
घटते बढ़ते और बदलते,
प्यार न पाकर पियराए हो,
शून्य नयन से पथराए हो?
शैली की कविता ‘टु द मून’ का अनुवाद
रचनाकाल: १२-०८-५६