क्या
मालूम है
तुम्हें
पर्दे के पीछे
बेतरह
रूठ गई है
वह
उसकी
मात्राएँ
झाँकती हैं
अथाह हरे की सलों में
उसके शब्द
हृदय की रेत पर
तड़पते से कुछ जीव हैं अक्स में
उसके अर्थ
तुम्हारे अंगों में
ख़ून की तरह
श्वेत और मौन हैं
बहुरंगी मेघों से
अश्रुबिन्द
बरस
जाते हैं
स्वरों की मुण्डेर पर
तब भी नहीं आती वह
नहीं आती
तब भी
नहीं आती वह
आती नहीं वह