क्या हुआ क्यूँ आपका चेहरा है उतरा हुआ
छोड़िये क्या सोचना जो हुआ अच्छा हुआ
मत बुझाओ तुम मुहब्ब्त के चरागों को अभी
नफरतों का है अँधेरा दूर तक फैला हुआ
रहनुमाँ बनकर लो आये हैं लुटेरे सामने
गौर से देखो तुम इनको रूप है बदला हुआ
जिसकी ख़ातिर बहता पानी रूक गया है देखिये
उस तरफ दरिया किनारे कौन है बैठा हुआ
लाख चाहे तुम छुपा लो आग रिश्तों में लगी
सब हकीकत खोल देगा ये धुआँ उठता हुआ
ज़िन्दगी ‘इरशाद’ तुम को गर मिले तो पूछना
फूल चेहरे पर खिला था आज क्यूँ सहरा हुआ