Last modified on 22 मई 2018, at 19:09

क्या है आज सबसे दुर्लभ? / कौशल किशोर

क्या है आज सबसे दुर्लभ
हमारे जीवन में?

यह सवाल
बच्चों से पूछा गया था
उनके स्कूूल में

बच्चे भी हार मानने वालों में नहीं थे
हाथ पाँव मारे
खूब माथा भिड़ाया
पर नहीं मिल सका उŸार
खोजते ढूँढ़ते चले गये अपने-अपने घर

बच्चों में मेरा बेटा भी था
गणित का कोई प्रश्न
न हल हो पाने जैसी परेशानी
झलक रही थी उसके चेहरे पर
और उसने किया मुझसे वही सवाल

बताओ पापा
क्या है आज सबसे दुर्लभ
हमारे जीवन में?

सवाल टँगा था मेरे सामने
हवा में उछलता
क्या हो सकता इसका जवाब?

मैं चुप...गंभीर...
छोटा सा
सरल-सा दिखने वाला सवाल
क्या हो सकता है इतना कठिन?

बेटा चाहता था तुरन्त जवाब
उसमें हम जैसा धैर्य कहाँ
फिर पता नहीं क्या सूझी
वह उठा लाया
घर के किसी कोने में पड़ी
बाबूजी की पुरानी लाठी
अपने कद से कहीं ऊँची
बाँध लिया सिर पर मुरैठे की तरह
बाबूजी का गमछा
आँखों पर चढ़ा लिया बाबूजी का मोटा ऐनक
लाठी टेक खड़ा हो गया मेंरे सामने
बाँया पैर आगे
दाँया पीछे
एक हाथ कमर पर
उसने बना ली थी अपनी मुद्रा अति गंभीर

बोलो ...बोलो...
क्या है वह...
क्या है वह...?
लगा लाठी पटकने

सारा घर जमा था
सब भौचक देख रहे थे यह दृश्य
बांध टूट गया था
रोके नहीं रुक रही थी अपनी हँसी
मक्के के लावे की तरह वह फूट पड़ी

मेरा हँसना क्या था
सब हँस पड़े
छोटा-सा घर
सबकी खिलखिलाहट से गूँज उठा
उसकी भंगिमा भी न रह सकी स्थिर
वह भी हँस पड़ा
सबके पेट में पड़ गया था बल

आर्कमेडिज की तरह मैं चिल्ला पड़ा
यूरेका...यूरेका...
यही तो...
यही तो... है वह सबसे दुर्लभ
हमारे जीवन में
यही तो...यही तो...