मैं सरयू तट पर नाव लेकर
आरण्यक में एक से दूसरी शाख पर झूलते
लंका में अस्तित्त्वबोध के शब्द को संजोए
अपनी कुटिया में रामनाम मांडे
अलख जगाए- धूनी रमाए
प्रतीक्षा करता हूँ- प्रभु की
और निष्ठुर प्रभु आते ही नहीं।
मैं सरयू तट पर नाव लेकर
आरण्यक में एक से दूसरी शाख पर झूलते
लंका में अस्तित्त्वबोध के शब्द को संजोए
अपनी कुटिया में रामनाम मांडे
अलख जगाए- धूनी रमाए
प्रतीक्षा करता हूँ- प्रभु की
और निष्ठुर प्रभु आते ही नहीं।