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क्यों नहीं होता / उमेश चौहान

शाम तक प्रतीक्षा थी
बादल छोड़ देंगे सूरज को
अपनी गिरफ्त से
भले ही थोड़ी देर के लिए और
नहला देगा वह हमें अपनी रोशनी से,
पर पता ही न चला
कब डूब गया सूरज
क्षितिज पर गहराए बादलों के पीछे
जिंदगी का सच ही यही है
नहीं हो पाता इसमें
सब कुछ पूरा
हमारी अपनी चाहत के अनुरूप।
पर कभी-कभी हो भी जाता है
बहुत कुछ यहाँ
हमारी अपनी इच्छाशक्ति के अनुरूप,
मसलन,
मोहनदास करमचन्द गाँधी का राष्ट्रपिता बनना
लाल बहादुर शास्त्री का देश का प्रधानमंत्री बनना,
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे देश में
श्रीधरन का हर प्रोजेक्ट समय से पहले पूरा होना
चन्द्रयान का चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित होना,
आदि।
क्यों नहीं होता आख़िर
इस देश में लोगों का समय से दफ़्तरो में पहुँचना
तय समय तक कुरसी पर बैठ
अपना काम पूरा करना
बच्चों की पढ़ाई के लिए
कोचिंग की ज़रूरत न पड़ना,
कर्णधारों का संयत बोलना
लोगों का नियम तोड़ते रहने से बचना
देश का पेट पालने वाले किसानों का
खाली पेट सोना आदि ।
शायद हमारी इच्छाशक्ति के अभाव में ही
नहीं होता सब कुछ यहाँ
हमारे देश का सूरज
यूँ ही डूबता रहता है असमय
हमारे द्वारा ही सृजित कुहासे में
अचानक चमक उठने की नित्याशा के बीच ।