क्यों बिसरै मेरा पीव पियारा।
जीवकी जीवन प्राण हमारा॥टेक॥
क्यौंकर जीवै मीन जल बिछुरें, तुम बिन प्राण सनेही।
चिंतामणि जब करतैं छूटै, तब दुख पावै देही॥१॥
माता बालक दूध न देवै, सो कैसैं करि पीवै।
निरधनका धन अनत भुलाना, सो कैसे करि जीवै॥२॥
बरखहु राम सदा सुख अमिरत, नीझर निरमल धारा।
प्रेम पियाला भर भर दीजै, दादू दास तुम्हारा॥३॥