बीहड़ में
फैलती है ज्यादा
बस्तियों में जाती सिमट
कितनी निडर
कितनी लाजवंती, नदी
प्रेम में पेड़-पौधों को
देती जीवन
और क्रोध में
सबको निगल जाती, नदी
सूख सकती है
पानी की कमी से
बदल सकती है रास्ता
पर मर नहीं सकती
कठिन से कठिन समय में भी, नदी
ढल जाती है हर हाल में
मिलना हो समंदर से
दौड़ती है सरपट
बनकर भाप
उड़ जाती है आकाष से मिलने, नदी
नदी का स्वभाव
छिपा नहीं है किसी से
लेकिन आज तक
कोई नहीं जान सका कि जब
दिन में खिलखिलाती है तो
रात में क्यों रोती है, नदी।