'तब तो बना दे तू भोले को हाथी ....'
खेल से परे एक काल्पनिक काबुलीवाला
हींग टिंग झट बोल में बस गया ...
जब कोई नहीं होता था पास
अपनी नन्हीं सी पोटली खोलती
काबुलीवाले को मंतर पढके बाहर निकालती
और पिस्ता बादाम मेरी झोली में
सच्ची मेरी चाल बदल जाती !
फिर मेरे खेल में मेरे सपनों का साथी बना अलीबाबा
और शून्य में देखती मैं 40 चोर
'खुल जा सिम सिम ' का गुरुमंत्र लेते
बन जाती अलीबाबा
और ..... कासिम सी दुनिया
रानी की तरह मुझे देख
रश्क करती !
कभी कभी आत्मा कहती -
यह चोरी का माल है
पर चोरों से हासिल करना हिम्मत की बात है
आत्मा को गवाही दे निश्चिन्त हो जाती ...
पर कासिम पीछा करता
चोर मुझे ढूंढते ...
जब बचना मुश्किल लगता
तो शून्य से लौट आती !
फिर फिल्मों में प्रभु का करिश्मा देखा
कड़ाही खुद चूल्हे पर
सब्जी कट कट कट कट कटकर
कड़ाही में ....
आटा जादू से गूँथ जाता
फिर लोइयां , फिर पुरियां
इतना अच्छा लगता
कि मैं रोज भगवान् को मिसरी देकर कहती
ऐसा समय आए तो ज़रा ध्यान रखना
और सोचती ...
ऐसा होगा तब सब मुझे ही काम देंगे
और मैं कमरे की सांकल लगा प्रभु के जादू से
बिना थके
मुस्कुराती बाहर निकलूंगी
सबकी हैरानी सोचकर बड़ा मज़ा आता था ....
फिर आई लाल परी
और मैं बन गई सिंड्रेला
चमचमाते जूते
बग्घी ... और राजकुमार !
घड़ी की सुइयों पर रहता था ध्यान
१२ बजने से पहले लौटना है ...
मेरी जूती भी रह जाती सीढियों पर
फिर ...
राजकुमार का ऐलान
और मेरा पैर जूते में फिट !
....
ज़िन्दगी के असली रास्ते बुद्ध की तरह नागवार थे
महाभिनिष्क्रमण मुमकिन न था
तो मुंगेरी लाल से सपने जोड़ लिए
पर एक बात है
मुंगेरी लाल की तरह मैं नहीं हुई
मेरे हर सपने मुझे जो बनाते थे
वे उतनी देर का सच होते थे
मेरे चेहरे पर होती थी मुस्कान
और भरोसा -
कि मैं कुछ भी कर सकती हूँ !
...
सपनों का घर इतना सुन्दर रहा ...
इतना सुन्दर है
इतना ------- कि ...
काँटों पर फूल सा एहसास नहीं हुआ
बल्कि कांटे फूल बन जाते रहे
और मैं शहजादी ...
मुझे मिली मिस्टर इंडिया की घड़ी
जिसे पहन मैं गायब होकर मसीहा बन गई
मैं जिनी बनी , मैं जिन्न बनी
पूरी दुनिया की सैर की
सच कहूँ - करवाई भी ....
सबूत चाहिए ?
... हाहाहा , अब तक आप मेरे साथ सैर ही तो कर रहे थे !
क्रम जारी है ...