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क्राँति की भाषा / रमेश रंजक

सुनो !
जड़ता तोड़ने के नाम पर तुमने !
एक हरियल रक़म पाई है

कहाँ है जड़ता
सभी चेतन खड़े हैं
एक चुप्पी है

          गाज यह उन पर गिरी है
          पास जिनके
          एक झुग्गी है

नोंच लेंगे वे तुम्हारा हर मुखौटा
थाम कर गंगाजली यह क़सम खाई है

क्रांति करती नहीं भाषा
            घरजमाई की
ओढ़ती है छाँह ओछी
            रहनुमाई की

क्रांति की भाषा वही आदम गढ़ेगा
हाथ में जिसने नई रेखा बनाई है