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क्रान्ति- एक भारी उद्योग / रणजीत

क्रान्ति एक भारी उद्योग है
विशाल निर्माण का भव्य अभियान
इसमें हज़ारों वैगन सीमेण्ट चाहिए
और लाखों टन लोहा
भारी मशीनें
और विदेशी नो-हाउ ।
हिन्दुकुश के पार है हैड-क्वार्टर
इसके एकाधिकारी मालिकों का
दुनिया के कोने-कोने में वे
क्रान्ति का निर्माण-कार्य करवाते हैं
स्थानीय ठेकेदारों से
टेण्डर आमंत्रित करके
क्रान्ति के नक़्शे पास करते हैं ख़ुद मालिक
सामग्री की गुणवत्ता का परिक्षण करते हैं
इंजीनियरों की विशेषज्ञता का और ठेकेदारों की निष्ठा का
उनकी मदद के लिए अपने विशेषज्ञ भेजते हैं, समय-समय पर
और जो ठेकेदार उनके मनोनुकूल काम नहीं करवा पाता
उसे बदल देते हैं, बिना देर लगाए।

ठेकेदार
इस भारी निर्माण के लिए
काम पर लगाता है
सस्ते स्थानीय मजदूर
मज़दूरी और बोनस
ग्रेचुइटी और पी०एफ०
मरणोरान्त पारिवारिक पेंशन
सब देता है ।

भरती के लिए
आसपास की बस्तियों में भेजता है अपने प्रतिनिधि
जो आन्दोलन और प्रचार करते हैं
मज़दूरों से कहा जाता है :
ख़ुद तुम्हारे लिए आवास-निर्माण का
क्रान्ति : एक भारी उद्योग
परोपकारी काम शुरू कर रहे हैं
साथी अमुक-अमुक
पहुँचे हुए क्रांतिकारी हैं ।
सहायता कर रहे हैं साथी विदेशी विशेषज्ञ
उन्हें भेज रहे हैं क्रान्ति की राजधानी से
महामहिम साथी जनरल सेक्रेट्री
अपने वैश्विक कर्तव्य-बोध से प्रेरित होकर
आइए
और आत्मोद्धार के इस पुनीत अभियान में शामिल हो जाइए
अपने सपनों का देश बनाइए
इन महान् ऐतिहासिक कार्य में अपना जीवन लगाइए
इसके लिए त्याग और बलिदान से उसे सार्थक बनाइए ।

एकत्र हो जाते हैं न्यूनतम मज़दूरी पर
ढेर के ढेर क्रांति के सैनिक
अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तत्पर
क्योंकि अदम्य है क्रान्ति का आह्नान
शताब्दियों से सोया हुआ रहता है
यह शब्द उनके रक्त की गहराइयों में
पर इस थका देने वाले भारी निर्माण के दौरान
कई बार इन आदर्शवादी सैनिकों का भी धैर्य छूट जाता है
और उन्हें यह आभास हो जाता है
कि जिन भव्य भवनों का निर्माण हम
विदेशी विशेषज्ञों के निर्देशन में कर रहे हैं
वे हमारे रहने के कभी काम नहीं आ सकते
क्योंकि उनकी पूरी रचना
विदेश में स्थित क्रान्ति की राजधानी में बैठे हुए
महामहिम नेताओं की ज़रूरतों के अनुसार हो रही है
तब वे भड़क उठते हैं
काम छोड़ कर भाग जाना चाहते हैं
या ज़्यादा हिस्सेदारी माँगते हैं निर्णय में
तब ठेकेदार को
मालिकों के परामर्श से
क्रान्तिकारी अनुशासन की स्थापना करनी पड़ती है
आख़िर इस महान् ऐतिहासिक कार्य में लगे हुए श्रमिकों को
क्रान्ति के स्रष्टाओं को
यों ही छुट्टे तो नहीं छोड़ा जा सकता
कि वे अपनी धुन में चाहे जिधर निकल जाएँ
और दुश्मन के द्वारा इस्तेमाल किए जाएँ
ऐसी असाधारण स्थिति में
स्थानीय ठेकेदार
बुला लेते हैं हैडक्वार्टर से पुलिस और फ़ौज
और अगर वे नू-नच करते हैं
तो हैडक्वार्टर ख़ुद ही भेज देता है उनकी इच्छा के विरुद्ध
जो विद्रोह को दबाती है
क्रान्ति की अब तक की उपलब्धियों को बचाती है
और बचे हुए विद्रोहियों को यातना-शिविरों में संयोजित करके
फिर काम पर लगाती है ।

बड़ा कठिन और उलझा हुआ होता है
क्रान्ति का निर्माण कार्य
उसमें वैगनों माँस लगता है
और टनों लहू ।