Last modified on 11 सितम्बर 2008, at 22:04

क्षणिकाएँ / रमा द्विवेदी


प्यार नाम है बस,
कुछ पल के आकर्षण का,
प्यार नाम है
सहूलियत का,
आदमी को तलाश है बस,
कुछ पल के प्यार की ।


रिश्तों का टिकाऊपन,
अब प्यार पर निर्भर नहीं,
वह निर्भर करता है,
अर्थ की शक्ति पर,
सुख-सुविधाओं के सामान पर,
रिश्तों की जितनी अधिक ज़रूरतें
पूरी होंगी,
प्यार गहराता जाएगा,
यदि आप ऐसा न कर सके,
रिश्तों का विशाल भवन,
रेत के महल की तरह,
कुछ पल में भरभरा कर गिर जाएगा ।


प्यार कभी शाश्वत नहीं होता,
प्यार का वह क्षण शाश्वत होता है ,
जिस क्षण प्यार होता है या किया जाता है,
इसकी पुनरावृत्ति यदि बारम्बार हो तो
हम भ्रमित हो जाते हैं,
कि अगला हमें बहुत प्यार करता है,
जन्म-जन्मान्तरों के प्यार का,
जो दावा करते हैं,
वह प्यार नहीं,
दूसरों को छलते हैं ।


प्यार बस लम्हों में
जन्म लेता है,
प्यार का वो लम्हा,
जीने के बाद ही,
दम तोड़ देता है ।


आधुनिक प्यार के,
मायने बदल गए हैं,
प्यार अब निष्ठा विश्वास
का नाम नहीं,
प्यार अब दिल बहलाने का
झुनझुना बनकर रह गया है।


शादी का सुरक्षा-कवच पहन,
शादीशुदा लोग,
कहीं भी आसानी से,
प्रवेश पा जाते हैं,
खूब इश्क़ फ़रमाते हैं,
यह अलग बात है कि
इश्क़ के दायरे में नहीं आते।


नवजवान आजकल,
ज्यादा संयमित हैं
अक्सर बड़े लोग ही,
’रेड लाइट एरिया’में,
पकड़े जाते हैं।


जन्म-जन्म का प्यासा समन्दर,
घोर गर्जन करता रहता है,
समस्त नदियों का आलिंगन पाने के लिए,
और वह पा भी लेता है, पर
फिर भी उसकी प्यास शान्त नहीं होती,
सामर्थ्यवान दूसरे के अस्तित्व को.
इसी तरह निगल जाते हैं।


पिघलना और जमना,
निश्चित तापमान पर,
निर्भर करता है, किन्तु
बर्फ बनी भावनाएँ,
प्यार के हल्के स्पर्श से पिघल जाती हैं।

१०
चट्टान सा स्थिर,
सागर का किनारा,
अनवरत सर पटकती लहरों से,
कभी पसीजता नहीं ।