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क्षण-क्षण में अनुभव मैं कर रहा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

क्षण-क्षण में अनुभव मैं कर रहा समय शायद आ गया,
विदाई के दिनों पर डालो अब आवरण
अप्रगल्भ सूर्यास्त आभा का;
जाने का समय मेरा
शान्त हो, स्तब्ध हो, स्मरण सभा का समारोह
कहीं रचे नहीं शोक का कोई सम्मोह।
वनश्रेणी दे प्रस्थान के द्वार पर
धरणी का शान्ति मन्त्र अपने मौन पल्लव बन्दनवार में।
उतर आये धीरे से रात्रि का शेष आशीर्वाद,
सप्तर्षि की ज्योति का प्रसाद।