.. और क्षण से
कट गए हम
अस्थियाँ चुनते हुए
मलबे गड़े मन्वन्तरों के
हिचकियाँ सुनते हुए
जर्जर गलित देशान्तरों के
टूटते सम्बन्ध की
चौहद्दियों पर
सब नए सम्बोधनों से
छँट गए हम
शीर्षकों से दूर
हारे कथ्य की केंचुल चुराकर
धुन्ध में हलके अनिर्णय की
महज कुछ गुनगुनाकर
देखते गुम्बद
कि चढ़ते सीढ़ियों पर
पीढ़ियों-दर-पीढ़ियों में
बँट गए हम !