Last modified on 6 अप्रैल 2022, at 11:52

खंजर / मिख़अईल लेरमन्तफ़ / मदनलाल मधु

बेहद प्यारे हो तुम मुझको, ओ, मेरे इस्पाती खंजर,
तुम हो ठण्डे, तुम चमकीले, रहते मेरे संगी बनकर,
चिन्तन में डूबे गुर्ज़ी ने बदले के हित तुम्हें बनाया,
युद्ध-भूमि के लिए मुक्त चेरकासी ने था सान चढ़ाया ।

विदा-घड़ी में किसी हाथ ने तुम्हें प्यार से मुझे दिया था,
भूल न जाऊँ उसे कभी मैं, इसीलिए तो भेंट किया था,
उस दिन नहीं बही थी तुम पर पहली बार लहू की धारा —
तड़प, वेदना के आँसू का चमक उठा था मोती प्यारा ।

और जमीं थीं वे दोनों ही काली-काली आँखें मुझपर,
रहीं देखती अपलक मुझको, किसी अजानी पीड़ा से भर,
लौ की फड़-फड़ से फल तेरा जैसे कभी चमक, धुन्धलाता,
वैसे ही वे कभी चमकतीं, कभी अन्धेरा उनमें छाता ।

तुम्हें बनाया मेरा संगी, तुम जामिन हो मूक प्यार के,
मुझ पंथी के लिए लक्ष्य हो, तुम निष्ठा के, प्यार-सार के,
हाँ, मैं कभी नहीं बदलूँगा, दृढ़ कर लूँगा अपना अन्तर,
उसी तरह से, उसी तरह से, जैसे तुम दृढ़ संगी खंजर ।

1838
 
मूल रूसी से अनुवाद : मदनलाल मधु

और अब यह कविता मूल रूसी भाषा में पढ़ें
            Михаил Лермонтов
                      КИНЖАЛ

‎Люблю тебя, булатный мой кинжал,
‎Товарищ светлый и холодный.
Задумчивый грузин на месть тебя ковал,
На грозный бой точил черкес свободный.

Лилейная рука тебя мне поднесла
‎В знак памяти, в минуту расставанья,
И в первый раз не кровь вдоль по тебе текла,
Но светлая слеза — жемчужина страданья.

И черные глаза, остановясь на мне,
‎Исполненны таинственной печали,
‎Как сталь твоя при трепетном огне,
‎То вдруг тускнели, то сверкали.

Ты дан мне в спутники, любви залог немой,
И страннику в тебе пример не бесполезный:
Да, я не изменюсь и буду тверд душой,
‎Как ты, как ты, мой друг железный.

1838 г.