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खटखुट / केदारनाथ अग्रवाल

खटखुट

खटखुट

कर रहा है काल

मेरे कान के पास

ज़मीन छोड़ कर

जल्द चलने के लिए

धक्का दे रहा है

उसे

मेरा एक बाल

मुझ से अलग रहने के लिए

तमाम उम्र

इंतज़ार में खड़े रहने के लिए


(रचनाकाल : 05.03.1964)