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खण्ड-4 / मन्दोदरी / आभा पूर्वे

हमरी माय
सुम्बा द्वीप के होतियै
दानव-वंश के बेटी होतियै
तेॅ की
हेने करतियै ?
हमरी माय तेॅ
अप्सरा कुल के छेली
देवता के देलोॅ दान
तभिये तेॅ
चौदह साल साथ रहियो केॅ
छोड़ी गेलै बाबू के साथ
हमरोॅ जन्म होलाहौ के बाद ।

ऊ नारी
सचमुचे में अप्सराहै कुल के होय छै
जे देह के वशीभुत होय
भटकै छै जहाँ-जहाँ
नै मन वश में
नै विचार वश में
नै निष्ठा वश में
भोग के मुर्त्ती बनी भटकेॅ
तेॅ अप्सरे नी छेकै,
ऊ कोय हुएॅ
हमरी माय हेने कैन्हे नी !

माय कहाँ समझलकी
बाबू के मनोॅ के बात
छोड़ी गेली
आरो बसी गेली जल देवता के घोॅर
हाही के कभियो, काहूँ सद्गति नै छै ।

यहेॅ हाही
आवी गेलोॅ छेलै
हमरोॅ पति रक्षधिप में
ऊ चाहेॅ जनानी में रहेॅ
कि पुरुख में
दोख तेॅ
दोनों केॅ लागै छै।
हमरी मांय तेॅ खुद्दे
जलदेव के घरोॅ में जाय बसली
आरो रक्षाधिप
उठाय लै आनलकै
दूसरा के जनानी
आर्यकुल शिरोमणि के जनानी सीताहै केॅ
देह के ई इच्छा के
जे दुर्गति होना छेलै
ऊ तेॅ होइये केॅ रहलै
कत्तेॅ मना करलेॅ छेलियै
नै लड़ोॅ आर्यकुल सें
हम्में जानै छियै आर्यकुल केॅ
कैन्हें कि आर्यकुल तेॅ
हमरे बंधु-बान्धव छेकै;

मतरकि
रक्षाधिप केना सहतियैµ
वंश के बात छेलै
कुल के बात छेलै
आर्य आरो रक्ष के बात छेलै।
जबेॅ आदमी के बीच
जाति, वंश, कुल, धर्म
आवी जाय छै
तबेॅ देश झुलसै छै
सोना नगरिये नै
प्रजा झुलसै छै
राजाहै के प्राण नै जाय छै
स्त्रा के गोद उजड़ै छै
ओकरोॅ ‘सुहाग’ जरै छै
ओकरोॅ देह के लूट-पाट होय छै।