Last modified on 11 मई 2016, at 10:01

खत लिखिहोॅ / अनिल शंकर झा

बागोॅ में फूल खिललोॅ छै
आरो हरियाय गेलोॅ छै धरती
पत्ताा से टपकै छै बूंदोॅ के मोती
आँखी में तैरी रहलोॅ छै याद तोरोॅ
लौटती डाक सें खत लिखिहोॅ
गुलाब के पंखुरी तेॅ वैहनें ताजा छै?
अड़हुल के फूल तेॅ वैहनें लाल सुर्ख छै?
लौटती डाक सें खत लिखिहोॅ।

यहाँ बरसां नें मोॅन भरी गीत गैलकी
हबा खूब ऐंठली
बिजली ताम-झाम देखैलकी
लेकिन हमरोॅ मोॅन कहीं नै रमलोॅ
यही ना, उदास, खेतोॅ-खलिहानोॅ में
गोडोॅ सें पानी उछाललां, घुमलां
उदासी भुनैतें रहल।
तों, लौटती डाक सें खत लिखिहोॅ।

कमलनाभ के गंध वैहनें भाबै तेॅ छै
वैहने भावै ते छै?
लौटती डाक से खत लिखिहोॅ।