संकट की इस घड़ी में
जब भी मैं पुकारती हूँ
अपने मित्रों को
उनके घरेलू नामों से
आदतन
मेरी इस विलक्षण पुकार पर
मुझे ज़वाब नहीं देता कोई
ज़वाब देती है
फ़क़त ख़ामोशी
(8 नवम्बर, 1943)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : सुधीर सक्सेना
संकट की इस घड़ी में
जब भी मैं पुकारती हूँ
अपने मित्रों को
उनके घरेलू नामों से
आदतन
मेरी इस विलक्षण पुकार पर
मुझे ज़वाब नहीं देता कोई
ज़वाब देती है
फ़क़त ख़ामोशी
(8 नवम्बर, 1943)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : सुधीर सक्सेना