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ख़ामोशी / आरती मिश्रा

खामोशी,
मुझे कचहरी-सी लगती है

जहाँ तफ़्तीश तर्क बहस
कभी-कभी निर्णय
और सज़ा भी निर्धारित होती है

यहाँ ख़ुद को
बाइज़्ज़त बरी नहीं किया जा सकता