कुछ दिन गज़ारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
साँसों का भी कोई पता नहीं
बस पत्ते पैर छूते रहे....
कुछ दिन गज़ारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
साँसों का भी कोई पता नहीं
बस पत्ते पैर छूते रहे....