Last modified on 3 अप्रैल 2010, at 15:07

ख़ामोशी की गलियों में / हरकीरत हकीर

कुछ दिन गज़ारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
साँसों का भी कोई पता नहीं

बस पत्ते पैर छूते रहे....