Last modified on 21 फ़रवरी 2009, at 00:19

ख़ामोशी शब्द और कल्पनाएं / केशव

यहीं-कहीं आस-पास है
ख़ामोशी की एक चट्टान
जिसे तोड़ने का भ्रम
किसी ट्यूमर की तरह
पल रहा है मेरे भीतर

कुछ शब्द हैं
माचिस की बुझी तीलियों-से
मेरे साथ-साथ चलते
मुझे निरंतर तंग होते
गलियारे की ओर ले जाते हुए

कुछ कल्पानाएँ हैं
भविष्य की खूँटी पर लटकी
जिनका हर तार
इतना चमकीला है
संगीत इतना नशीला है
कि होश आने तक
आदमी हो जाता है
एक खाली म्यान
न धार बचती है
न चरमराती सीढ़ियों का ध्यान

दिमाग बुझे अलाव-सा
घेरे रहता है
जिंदगी का दालान

खामोशी, शब्द और कल्पनाएँ
सबको एक ही साँप ने डँसा है
आँखों में फिर भी
रोशनी का एक खूबसूरत शहर बसा है.