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ख़ाली आकाश ख़ाली नहीं / नीलोत्पल

             - सुशोभित सक्तावत के लिए

मैं तुम्हें देखता हूं
जैसे बादल लौट रहे है
ख़ाली आकाश में

हम अपने दिलों के अभेद्य किले में
रचते अपने शब्द
मशग़ुल हैं

मैं तुम्हें देखता हूं
जैसे ख़ाली आकाश
ख़ाली नहीं

वहां बारीश है,
पत्थर है,
कपास है

द्वीप हैं
छायाएं हैं
जड़ें हैं

वहां उदास औरतें हैं
ज़ख़्मी हाथ हैं
सुनहरे पंखों वाली किताबें हैं

सेल्युलाइड पर रचे दृश्य हैं
झरती पत्तियां हैं
उत्सवों पर कलपती आत्माएं हैं

वहां फाग है
धुंध है
गंदी नालियों के मुहाने हैं

हर लिखा मिटाया गया है
तराशी मूर्तियां चुप हैं
कवि अंधेरे में शब्द ढूंढता है

मैं तुम्हें देखता हूं
जैसे हमारे बीच कुछ बचा नहीं
जैसे ख़ाली आकाश

लोगों से कहो चीखे नहीं
लेकिन उन्हें सलाह मत दो
वे चलते रहे

ख़ैर, जैसा रहा
हमनें उम्मीदों को और बढ़ाया नहीं

हम दे रहे हैं जीवन को
नाख़ूनों के काटे जाने की मियाद तक

हम अपने शब्दों की मुहर हैं