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ख़ाली जेब / विष्णु नागर

आप कवियों से
बस, इतनी उम्मीद कीजिए
कि वे अच्छी कविताएँ लिखें
आप उनसे
अच्छा आदमी होने की उम्मीद
करते ही क्यों हैं
वे तो ऐसी ग़लती कभी
आपके बारे में नहीं करते
और आप हैं कि सबसे कहते फिर रहे हैं
कि वह कवि होते हुए भी
कितना गलीज आदमी है

होगा
अरे, वह आदमी है
कोई कम्प्यूटर-प्रोग्राम नहीं
इसकी ख़ुशी नहीं है आपको
अगर है तो फिर आइए न
कट चाय हो जाए
क्या कहा एक-एक पैग हो जाए
भई, एक क्यों, फिर तो दो हो जाएँ
हालाँकि फ़िलहाल
मेरी जेब में पैसे नहीं हैं
और कहते हैं कि उधार, प्रेम की कैंची है!