ख़ुद अपना इंतिज़ार भी
हम अपने में क़रार भी
सिफ्ऱ का रेग-ज़ार भी
मगर मिरा दयार भी
लहू मिरा सुकूत भी
जुनूँ का शाहकार भी
सफ़र में मरहला बना
दवाम का हिसार भी
नज़र उठा के कर दिया
ख़ला के दिल पे वार भी
तराशी हम ने रूह जब
उठा था कुछ ग़ुबार भी
गुज़र चुके हैं बार-हा
ख़ुदा के आर-पार भी
‘रियाज़’ मावरा तो हो
कि हो तिरा शुमार भी