Last modified on 12 जुलाई 2007, at 16:10

ख़ुद अपने ज़र्फ का / हनीफ़ साग़र


ख़ुद अपने ज़र्फ का अन्दाज़ा कर लिया जाए
तुम्हारे नाम से इक जाम भर लिया जाए

ये सोचता हूं कि कुछ काम कर लिया जाए
मिले जो आईना तुझ-सा संवर लिया जाए

तुम्हारी याद जहां आते-आते थक जाए
तुम्ही बताओ कहा ऐसा घर लिया जाए

तुम्हारी राह के काटे हो, गुल हो या पत्थर
ये मेरा काम है दामन को भर लिया जाए

हमारा दर्द न बाटो मगर गुज़ारिश है
हमारे दर्द को महसूस कर लिया जाए

ये बात अपनी तबीयत की बात होती है
किसी के बात का कितना असर लिया जाए

शऊरे-वक़्त अगर नापना हो ए `साग़र'
ख़ुद अपने आप को पैमाना कर लिया जाए