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ख़ुद से ख़िलाफ़त / राजेश चड्ढ़ा

यूं ही-बस
बेख़याली में,
किसी अपने को-
सच्ची बात
कह कर,
जब पराया
कर लिया मैंने,
उसी दिन से
ख़िलाफ़त-
ख़ुद की
करता हूं।
मैं क़िस्से
रोज़
गढ़ता हूं।
मौहब्बत
लिख के,
चेहरे पर-
मौहब्बत
को ही
पढ़ता हूं