(गुलज़ार साहब का गीत सुनने के बाद)
बूँदें झर रही हैं
मगर क्यों है इतनी बेसुवादी-बेसुवादी रात ?
धरती पर
अभी भी बचा है स्वाद
ख़्वाब देखो तो कोई बात बने ।
(गुलज़ार साहब का गीत सुनने के बाद)
बूँदें झर रही हैं
मगर क्यों है इतनी बेसुवादी-बेसुवादी रात ?
धरती पर
अभी भी बचा है स्वाद
ख़्वाब देखो तो कोई बात बने ।