Last modified on 31 जनवरी 2011, at 18:14

ख़्वाहिशें / मख़दूम मोहिउद्दीन

ख़्वाहिशें
लाल, पीली, हरी, चादरें ओढ़ कर
थरथराती, थिरकती हुई जाग उठीं
जाग उठी दिल की इन्दर सभा
दिल की नीलम परी, जाग उठी
दिल की पुखराज
लेती है अंगड़ाईयाँ जाम में
जाम में तेरे माथे का साया गिरा
घुल गया
चाँदनी घुल गई
तेरे होंठों की लाली
तेरी नरमियाँ घुल गईं
रात की, अनकही, अनसुनी दास्ताँ
घुल गई जाम में
ख़्वाहिशें
लाल, पीली, हरी, चादरें ओढ़ कर
थरथराती, थिरकती हुई जाग उठीं ।